Thu. Aug 7th, 2025

हरिद्वार/डरबन। निरंजनी अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित धराली समेत तीन जगहों पर आई प्राकृतिक आपदा पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने इस घटना में मारे गए लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ करने वालों के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है। इन आपदाओं ने एक बार फिर सचेत किया है कि पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

शिव शक्ति ध्यान केंद्र दक्षिण अफ्रीका के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी रामभजन वन ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि धराली और हर्षिल में बाढ़ के दृश्य वाकई भयावह हैं। इस आपदा ने कितने घर, दुकानें और होटल बहा लिए, इसका आकलन अभी बाकी है, लेकिन हादसे के बाद लोगों में डर और अनिश्चितता साफ़ देखी जा सकती है। राहत की बात बस इतनी है कि यह हादसा दिन में हुआ, जिससे राहत कार्य तुरंत शुरू किया जा सका। अगर यह घटना रात में हुई होती तो भारी जनहानि हो सकती थी। उन्होंने कहा कि धराली और हर्षिल पवित्र चारधाम यात्रा के मार्ग पर आते हैं। अभी चारधाम यात्रा चल रही है। ऐसे में इन दोनों स्थानों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु रुकते हैं। दरअसल, पूरा हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों का दंश झेल रहा है। इस क्षेत्र में अनियमित मौसम पैटर्न, ग्लेशियर टूटने और बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। वर्ष 2013 में केदारनाथ में हुई भारी तबाही के बाद राज्य में लगातार छोटी-बड़ी घटनाएं होती रही हैं। वर्ष 2021 में चमोली जिले में नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के पास एक ग्लेशियर टूटकर गिर गया। इससे धौलीगंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई और तपोवन विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना में काम कर रहे कई श्रमिकों की जान चली गई। इसी तरह, वर्ष 2023 में धार्मिक पर्यटन स्थल जोशीमठ में भूस्खलन से भी बड़ी आबादी विस्थापित हुई। उन्होंने कहा कि पहाड़ी राज्यों में अनियोजित शहरीकरण और बेतहाशा वनों की कटाई ने इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है। बढ़ती आबादी और लाखों पर्यटकों के बोझ के कारण स्थिति और विस्फोटक हो गई है। लेकिन, यह भी एक सच्चाई है कि जल निकासी मार्गों, नदी-नालों के मुहानों पर बड़े-बड़े कंक्रीट के ढांचे खड़े कर दिए गए हैं। जिन रास्तों से पानी बहना चाहिए था, उन पर लोग बस गए हैं। ऐसे हालात साफ दर्शाते हैं कि यह स्थिति जानबूझकर आपदा को न्योता देने जैसी है। हालांकि पूरा ध्यान धराली और आसपास के प्रभावित इलाकों में त्वरित बचाव और राहत कार्यों पर होना चाहिए, लेकिन पहाड़ी राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए एक व्यापक आपदा प्रबंधन रणनीति बनाने की जरूरत है। संवेदनशील राज्यों में पूर्व चेतावनी प्रणाली अपनाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन की तैयारियों में स्थानीय भागीदारी भी होनी चाहिए, और संवेदनशील इलाकों में निर्माण और भूमि उपयोग के लिए सख्त नियम होने चाहिए। धराली में हुआ नुकसान दर्शाता है कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। यह तय है कि हमारी तैयारियां नुकसान को कम कर सकती हैं। नीति निर्माताओं को पहाड़ी राज्यों में बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने पर ध्यान देने की जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *