-मानवता को आकार देने वाली गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस न केवल भारत में, बल्कि थाईलैंड, कम्बोडिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका आदि अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी पढ़ी जाती हैं
-यूनेस्को के ‘मैमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफकि रीजनल रजिस्टर’ में सुशोभित
-श्री राम जी के नाम की वह अमर गाथा, जो युगों-युगों तक मानवता को दिशा देती रहे उसी कालजयी रचना श्रीरामचरित मानस के शिल्पी है गोस्वामी तुलसीदास जी
-श्री रामचरितमानस केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि वह कालजयी रचना है जो भारतीय जीवनमूल्यों त्याग, सेवा, कर्तव्य, करुणा, शौर्य और संयम की जीवंत पाठशाला
-गोस्वामी तुलसीदास जी ने वाल्मीकि रामायण को लोकभाषा अवधी में पुनःर्सृजित कर उसे जन-जन तक पहुंचाया
-गोस्वामी तुलसीदास जी ने साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्रांति का सुत्रपात किया
-भारत की आत्मा के साथ साक्षात्कार का दिव्य ग्रंथ श्रीरामचरितमानस : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती के शुभ अवसर पर माँ गंगा के पावन तट परमार्थ निकेतन से उस युगद्रष्टा संत, महान कवि और सनातन संस्कृति के संवाहक को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुये आज की दिव्य गंगा आरती समर्पित की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी की लेखनी ने न केवल श्रीरामकथा को जन-जन तक पहुँचाया, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज की आत्मा को नवचेतना प्रदान की।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन और काव्य सृजन एक ऐसे आलोक स्तम्भ के समान है, जो युगों-युगों तक मानवता को धर्म, करुणा, सेवा, संयम और कर्तव्य का पथ दिखाते रहेंगे। उन्होंने जिस भाव भाषा में श्रीराम जी की गाथा को प्रस्तुत किया वह अवधी भाषा उस काल में लोक की भाषा थी। उन्होंने संस्कृत के गूढ़ तत्वों को सरल बना कर जनसामान्य तक पहुँचाया। श्रीरामचरितमानस केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि भारतीय जीवनमूल्यों की जीवन्त पाठशाला है।
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित कालजयी रचना “श्रीरामचरितमानस” भारतीय साहित्य की वह अमर धरोहर है, जिसमें केवल रामकथा ही नहीं, बल्कि भारत की आत्मा बसती है। यह ग्रंथ त्याग, तप, प्रेम, भक्ति, मर्यादा, करुणा और राष्ट्र धर्म का प्रतिरूप है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्रांति का सूत्रपात किया। जब देश मुगल आक्रमणों के कारण अस्थिरता और भय के दौर से गुजर रहा था, तब उन्होंने रामकथा के माध्यम से एक आध्यात्मिक धागे में समूचे समाज को बाँध दिया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने का कार्य किया। उनका साहित्य न केवल धर्म की रक्षा करता है, बल्कि राष्ट्रभाव को भी सशक्त करता है।
आज जब दुनिया भौतिकवाद, तनाव और पर्यावरण संकट से जूझ रही है, तब तुलसीदास जी के विचार और उनकी लेखनी एक संजीवनी के समान हैं। श्रीरामचरितमानस केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह तो भारत की आत्मा से साक्षात्कार कराने वाला दिव्य ग्रंथ है। यह हमें अपने मूल से जोड़ता है, हमारी जड़ों को सींचता है और हमारे संस्कारों को दृढ़ करता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी का राम नाम के प्रति यह अपार प्रेम और विश्वास हमें यह सिखाता है कि जब तक भारतवर्ष में रामकथा की गूंज है, तब तक इस देश की संस्कृति, संस्कार और सनातन चेतना जीवित और जाग्रत रहेंगी।
गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती केवल एक स्मरण दिवस नहीं है, यह अपने साहित्यिक और सांस्कृतिक उत्तरदायित्वों के पुनर्स्मरण का अवसर है। यह वह दिन है जब हम न केवल श्रीरामचरितमानस को पढ़ें, बल्कि उसे जीने का संकल्प भी लें।
इस पावन अवसर पर हम सभी तुलसीदास जी की साधना को नमन करते हुए संकल्प लें कि हम अपने जीवन को श्रीराम जी के आदर्शों के अनुरूप बनाएं और सनातन संस्कृति की अखंड ज्योति को युगों-युगों तक प्रज्वलित रखें।