हरिद्वार। अध्यात्म चेतना संघ की ओर से ज्वालापुर स्थित मोती महल मंडप में आयोजित किये जा रहे श्रीमद्भागवत भक्ति महायज्ञ में द्वितीय दिवस की कथा का श्रवण कराते हुए कथा व्यास आचार्य करुणेश मिश्र ने कहा कि ‘”व्यास पीठ पर विराजमान होकर कथा व्यास कथा के श्रोताओं को जो भी व्यावहारिक बातें बताता है, यदि वही उपदेश कथा व्यास के अपने आचरण में नहीं हों, तो कथा के श्रोताओं को कथा श्रवण का कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिये, यह बहुत ही आवश्यक है, कि वह सभी आचरण कथा व्यास के निजी जीवन में भी हों, जिनका वर्णन वह व्यास पीठ से कर रहे हैं।”
भगवान वेद व्यास जी के चरित्र तथा जीवनमुक्त श्री शुकदेव जी के प्राकट्य से प्रारम्भ करते हुए कथाचार्य ने कहा कि, “कोई भी बाद तभी दूसरे को प्रकाशित करेगी, जब वह खुद के आचरण में होगी। जब शुकदेव जी में माता शारदामणी से धर्म प्रचार के लिये आवश्यक गुण उनके चरित्र में देखे, तो उन्होंने शुकदेव जी को धर्मप्रचार करने हेतु आज्ञा प्रदान कर दी।
कथाक्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्यजी ने आगे कहा कि भगवान तो उनको मारने के उद्देश्य से अपने पास आने वाली राक्षसी पूतना को भी वही गति प्रदान करते हैं, जो उन्होंने माता यशोदा को प्रदान की। भगवान का स्वभाव इतनी दयालुता व सरलता लिये हुए है, कि वे सब पर ही कृपा करते हैं। लेकिन, हम लोग केवल विपत्ति के समय ही भगवान को याद करते हैं, जबकि सबसे बड़ी विपत्ति तो तब है, जब अथाह सम्पत्ति होते हुए भी हमारे पास नाम जप करने, नाम सुमिरन करने और कथा श्रवण करने का समय न हो- ‘कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई, जब तब सुमिरन भजन न होई।’
श्रीभगवान की पावन आरती के अवसर पर प्रमुख रूप से कमल कांत शर्मा, ब्रजेश कुमार शर्मा, रवीन्द्र सिंघल, सुधीर शर्मा तथा मुख्य यजमान दम्पति सहित अनेक यजमान परिवार व श्रद्धालुजन उपस्थित रहे।
