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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन, उत्तराखंड न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर डेस्टिनेशन वेडिंग, डेस्टिनेशन कान्फ्रेंस और डेस्टिनेशन संस्कार का केन्द्र बनकर उभर रहा है। मूल रूप से कश्मीरी और वर्तमान में दुबई में रहने वाले लबरू परिवार ने अपने दोनों बच्चों बेटी आर्या और बेटे आर्यन का उपनयन संस्कार परमार्थ निकेतन में पूरे विधिविधान व वेदमंत्रों के साथ कराया। तत्पश्चात पूरे परिवार ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में विश्व विख्यात गंगा आरती और विश्व शान्ति हवन में सहभाग किया।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने वेड इन इन्डिया का स्लोगन दिया और परमार्थ निकेतन की दिव्यता और भव्यता वेड इन ऋषिकेश, उत्तराखंड के साथ संस्कारों के रोपण के लिये भी पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। कश्मीर व दुबई दोनों स्थान ऐसे हैं जो पूरी दुनिया में अपने प्राकृतिक और नैसर्गिक सौन्दर्य के लिये विख्यात है, जहां की हरियाली, चमकती रेत, सागर का नीला जल और प्रकृति का अपना अनोखा अन्दाज सब का मन मोह लेता है उस धरती से लबरू परिवार गंगा तट पर अपने बच्चों के उपनयन संस्कार सम्पन्न कर उनके जीवन को सनातन संस्कृति से सिंचित करने हेतु परमार्थ निकेतन लेकर आये, यह वास्तव में उत्तराखंड के लिये गौरव का विषय है।
भारत सहित पश्चिम की धरती से आये अतिथियों ने उपनयन संस्कार के साथ परमार्थ गंगा आरती का आनंद लिया और वे यहां की दिव्यता व पवित्रता देखकर गद्गद हुये और कहा यह है वास्तव में डेस्टिनेशन संस्कार व वेडिंग के लिये अद्भुत स्थान है। यहां पर हिमालय की हरियाली, गंगा का निर्मलता, परमार्थ निकेतन का आध्यात्मिक वातावरण, ऋषियों की साधना की दिव्य ऊर्जा, ध्यान व योग का वातावरण, तपोपूत पवित्र भूमि, पूज्य संतों के पावन सान्निध्य में वास्तव में जीवन में संस्कारों का रोपण स्वतः ही हो जाता है। यहां पर होने वाली वेडिंग में हनी भी है और मून भी है। ऐसे दिव्य स्थान पर किये गये संस्कार और विवाह अपनी संस्कृति, संस्कारों से सिंचित, अपने मूल व मूल्यों से जुड़ने वाले होते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि नदियों के पावन तटों पर अनेक संस्कृतियों का जन्म हुआ और संस्कृतियाँ पुष्पित व पल्लवित हुई वैसे ही इन तटों से जीवन में भी सहजता से संस्कार पुष्पित व पल्लवित होते हैं। ऋग्वेद में सात नदियों ‘सिन्धु, सरस्वती, शतुद्रि (सतलज), विपासा (व्यास), परुष्णी (रावी), असिक्नी (चिनाब), और वितस्ता (झेलम) का उल्लेख मिलता है। साथ ही ऋग्वेद में गंगा जी तथा यमुना जी का कई बार उल्लेख हुआ है। सरस्वती एवं दृष्द्धती नदियों के बीच का प्रदेश सबसे पवित्र मान गया है जिसे “ब्रह्मावर्त” कहा गया है और इन नदियों के तटों पर जीवन के लगभग सभी संस्कार सम्पन्न किये जाते है। नदियों का जल जिस प्रकार शीतल होता है उसी प्रकार व जीवन को भी शीतलता प्रदान करती है।
स्वामी जी ने दोनों बच्चों आर्या व आर्यन को उपनयन संस्कार के विषय में जानकारी देते हुये कहा कि उपनयन अर्थात ‘गुरु के समीप ले जाना’ इस संस्कार के माध्यम से बच्चे सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी बन जाते है। उपनयन संस्कार के पश्चात बालक “द्विज” हो जाता है अर्थात उसका दूसरा जन्म होता है; जीवन में ज्ञान का; संस्कारों का उदय होने लगता है और जीवन संयमी होने लगता है।
स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी को अपने मूल, मूल्य और जड़ों के जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान समय में कारों के माॅडल बढ़ते जा रहे है और संस्कार घटते दिखायी दे रहे हैं इसलिये जरूरी है बच्चों को संस्कारों से जोड़े रखना।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आर्या व आर्यन के माता-पिता आशीष लबरू और किंजल लबरू को अपने घर व बच्चों में संस्कार व संस्कृति को जीवंत बनाये रखने के लिये प्रेरित करते हुये सभी को गायत्री मंत्र और ऊँ का उच्चारण कराया। इस अवसर पर दुबई, कनाडा, दिल्ली, मुम्बई, बैंगलोर, धर्मशाला आदि स्थानों से आये परिजन रमन लबरू, रजनी लबरू, भरत मेहता, हंसा मेहता, निशित मेहता, निराली मेहता और अन्य परिवारजन उपस्थित थे।
परमार्थ निकेतन से गद्गद होकर स्वामी जी से आशीर्वाद लेकर लबरू और मेहता परिवार ने विदा ली।




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