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हरिद्वार। स्वामी आलोक गिरी महाराज ने कहा कि हिंदू धर्म में नवरात्रि के 9 दिन शक्ति की उपासना के दिन हैं।‌ जिसमें मां भगवती के 9 अलग-अलग रूपों की अलग-अलग दिन पूजा की जाती है।‌इस पूजन विधि में श्रीमद्देवी भागवत पुराण सुनने का विशेष महत्व बताया गया है।‌जो धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के साथ हर लौकिक व पारलौकिक इच्छा को पूरी करने वाली कही गई है। ऐसे में लोगों को बढ़ चढ़कर कथा में शामिल होकर श्रवण करना चाहिए।

 

गौरतलब है कि श्री बालाजी धाम सिद्धबलि हनुमान नर्मदेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में स्वामी आलोक गिरी महाराज की प्रेरणा और पूजारी बाबा मनकामेश्वर गिरी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् देवीभागवत कथा के आठवें दिन कथा व्यास पं सोहन चंद्र ढौण्डियाल ने भक्तों को कथा का महत्व समझाते हुए कहा कि

नवरात्रि में नौ दिन तक मां दुर्गा की विशेष उपासना होती है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की विधि विधान पूजा की जाती है। जिसमें श्रीमद्देवी भागवत पुराण सुनने का विशेष महत्व होता है। मां भगवती की इस कथा से भगवान श्रीकृष्ण को दिव्य मणि की प्राप्ति और उनके विवाह का भी प्रसंग जुड़ा है। आज हम आपको उसी कथा के बारे में बताने जा रहे है।‌ पंडित सोहन चंद्र ढौण्डियाल ने कहा कि देवी भागवत पुराण में सूतजी श्रीकृष्ण की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि द्वारका में सत्राजित से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य उसे स्यमंतक मणि उपहार में देते हैं।‌ जो रोजाना आठ भार सुवर्ण देती थी। इस मणि को सत्राजित का भाई प्रसेन एक बार शिकार खेलते समय गले में पहन कर वन चला गया. वन में प्रसेन को एक सिंह ने मारकर मणि छीन ली और सिंह को मारकर ऋक्षराज जाम्बवंत ने उस मणि को लेकर खेलने के लिए अपने पुत्र को दे दी। इस बीच प्रसेन के नहीं लौटने से नगर में अफवाह फैल गई कि श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि के लिए प्रसेन का वध कर दिया। इस कलंक को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण खुद उसे खोजने वन में गए।जहां उनका मणि के लिए जामवंत से घोर युद्ध हुआ।‌इधर, वासुदेवजी को इस घटना की जानकारी मिलने पर वे चिंता में पड़ गए। तभी नारद मुनि उनके पास आकर उनकी परेशानी दूर करने के लिए उन्हें श्रीमद्देवीभागवत पुराण की कथा सुनने को कहते हैं। वासुदेवजी के आग्रह पर नारदजी ही ये कथा उन्हें 9 दिन के लिए सुनाते हैं, जिसके प्रताप से श्रीकृष्ण जामवंत को युद्ध में हराकर वापस लौट आते हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार, युद्ध में हार के साथ ही जाम्बवंत ये भी जान जाते हैं कि श्रीकृष्ण भगवान राम के ही रूप हैं. ऐसे में वह उन्हें स्यमंतक मणि देने के साथ अपनी बेटी जामवंती के विवाह का प्रस्ताव भी उनके सामने रखते हैं, जिसे श्रीकृष्ण स्वीकार कर लेते हैं।‌इसके बाद वे जामवंती से विवाह कर ही वापस द्वारका लौटतेे हैं, जिसके बाद ही वासुदेवजी की देवी भागवत पुराण कथा का विधिवत समापन होता है। इस मौके पर इस मौके पर कथा संयोजक पुजारी बाबा मनकामेश्वर गिरी, विशाल शर्मा, हरीश चौधरी, प्रद्युम्न सिंह, उमा रानी, प्रिंसी त्यागी, रूचि अग्रवाल, निर्मला देवी, किरण डबराल, अंजू देवी, डोली रावत, दानेश्रवरी शर्मा, मिथलेश ठाकुर, मोहिनी बंसल, उमा धीमान, शिखा धीमान, विनीता राजपूत, किरण भट्ट, कमला जोशी, मीनाक्षी भट्ट, मंजू उपाध्याय, पुरी रावत, अंकुर शुक्ला, कुलदीप शाह, योगेश उपाध्याय, दीपमाला निशा, आशीष पंत, प्रांजल शर्मा सहित अन्य भक्तजन मौजूद रहे।




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